दर्शन के मंदिर का दीपक
सखी बना संगीत
पूजा की थाली का चंदन
सखी बना प्रतीक
सोया मन तो जाग उठा है
उड़ने से भयभीत
हर कण है गुम्फित आकर्षण
बाँट रहा नवनीत
रस रत्नाकर सखि अद्भुत है
क्रम से नाचे नौ तस्वीर
अपना कह कर है आमंत्रण
परसे, विसरे नीति
किसको दोष सखि अब दूँ मैं
सब की है एक ही लीक
रचना ही साकार ब्रह्म है
वाणी है संगीत
Friday 2 November, 2007
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8 comments:
छोटा मुँह बड़ी बात मैम पर
यह पंक्ति-सोया मन तो जाग उठा है
उड़ने से भयभीत
सच है.कभी कभी यह आभास होता है कि हम नयी डगर पर चलने से सकुचा रहे हैं।यह जानते हुये भी कि यही यथेष्ट पथ है।
रचना ही साकार ब्रह्म है
वाणी है संगीत.
सही कहा आपने.सृजन अपने आप में अप्रतिम होता है.
रचना ही साकार ब्रह्म है
वाणी है संगीत
अद्भुत है.
रसो वै स:
सही कहा आपने
बहुत ही उम्दा रचना. कई बार पढ़ी.
सब में वही हैं - कमी का तो प्रश्न ही नहीं। विराट भाव।
तुम कितना अच्छा रचती हो
तुम मेरी माँ जैसी हो।
बहुत सुन्दर
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