Sunday 28 October, 2007

जीवन मैंने देखा जैसा

जगत मंच पर उत्सव जैसा
भाव-सिंधु भव-सागर जैसा
जीवन मैंने देखा जैसा
प्रभु की दुर्लभ इच्छा जैसा
तीरथ की पगडण्डी जैसा
फेरे जैसे धरती जैसा
भगीरथ की गंगा जैसा
पूर्ण से पूर्ण निकलने जैसा
बंद मुट्ठी में सिकता जैसा
कुछ खोकर फिर पाने जैसा
एक अथक प्रतीक्षा जैसा
सात सुरों के सरगम जैसा
आरोहण-अवरोहण जैसा
पूजा और अर्चना जैसा
प्रभु मंदिर में दीपक जैसा
श्री गिरधर की गीता जैसा
जीवन एक साधना जैसा
जीवन मैंने देखा जैसा

-२६.१०.२००७

7 comments:

ALOK PURANIK said...

कुछ खोकर फिर पाने जैसा
एक अथक प्रतीक्षा जैसा
बिलकुल सटीक है, अथक प्रतीक्षा जैसा खत्म हो, तो खऱाब लगे, चलती रहे, तो खऱाब लगे। खोना-पाना, पाना खोना।

बोधिसत्व said...

आपने बहुत अच्छा जीवन देखा.....एक दम बहुरंगी....और अलग।

Gyan Dutt Pandey said...

यह पढ़ कर तो अपने जीवन के बेस्वाद-अवसाद से कष्ट हुआ। उसमें कुछ सार्थक ढ़ूंढने की कोशिश करनी होगी आपके जैसा कुछ लिखने को!

Sanjay Gulati Musafir said...

श्री गिरधर की गीता जैसा
जीवन एक साधना जैसा
जीवन मैंने देखा जैसा

विभोर जी
गूढ अज्ञानी हूँ । नहीं जानता कि आपके जीवन-दर्शन में विशेष ऊँचाई है या विशेष गहराई । हाँ इतना जांता हूँ कि हर शब्द मुझे छूकर गुज़रा ।

माँ सरस्वती आप पर अपनी कृपा बनाए रखें
सविनय
संजय गुलाटी मुसाफिर

namita said...

विम्ला जी
यूं ही घूमते घामते आपके ब्लोग पर पहुंच गये .about me मे लिखे गये एक वाक्य ने रोका ’हर वस्तु मुझे विभोर ...’ क्यो य़ह अगर कभी मेरा profile देखेगी तो समझ जायेगीं.फिर आपका profile देखा और कान्पुर पहुंच गये .बहुत दिन हो गये अपना शहर छोड़े ...अब आपकी कविताये....सात सुरो के सर्गम जैसा
साधना जैसा
गीता जैसा
विभोर तो हो ही गये ,विचारों मे ऊब-चूब होने लगे क्या खोया क्या पाया जैसा

नमिता

ghughutibasuti said...

इतनी सुन्दर कविता कि लगता है प्रकृति अपने झरनों, पवन, पत्तों की खड़खड़ाहट का संगीत स्वयं ही साथ दे रही हो । आपने जैसा जीवन देखा , जिन आँखों से देखा वे अवश्य ही बहुत विशेष रही हो्गी व बहुत ही पैनी परन्तु निश्छल दृष्टि रखती होंगी ।
अभय जी को मेरा बहुत बहुत धन्यवाद कि उन्होंने हमें आपकी रचनाएँ पढ़ने का अवसर दिया ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा यह जीवन दर्शन माता जी.

जीवन एक साधना जैसा
जीवन मैंने देखा जैसा