Monday 22 October, 2007

मैं धन्य हो गई

मेरी कविता से मेरा परिचय जान लिया,
मैंने बिन देखे ही स्वजनों को पहिचान लिया।
वास्तव में भाव और वाणी ही वास्तविक परिचय हैं जो हमें एक सूत्र में बाँधते हैं।

मैं धन्य हो गई जो कविता प्रिय लगी। मैं सबको आशीर्वाद, शुभकामनाओं के साथ धन्यवाद करती हूँ। वैसे इस उत्सव में मेरा प्रवेश कराने का सारा श्रेय मेरे बेटे अभय तिवारी को है। उसने जैसे प्रभु की पूजा की हो। मैं धन्य हो गई.. क्योंकि..

कैसे लिख जाती है कविता,
भाव कहाँ से आते हैं ?
हाथ ये कैसे लिख देते हैं,
शक्ति कहाँ से पाते हैं ?

16 comments:

Anonymous said...

सुंदर। आगे और कवितायें पढ़ने का इंतजार है।

काकेश said...

सुन्दर भाव.

Batangad said...

क्या बात है। आप तो अनुभव से ही बहुत कुछ अनायास ही लिख सकती हैं।

उन्मुक्त said...

इंतजार है कविताओं का।

ALOK PURANIK said...

धन्य तो हम आपको पढ़कर हुए हैं। इस उम्र में यह जिजीविषा, कुछ कहने, बांटने की ललक,पता नहीं,आपकी उम्र तो पहुंचते-पहुंचते हम इतना थक जायेंगे और अपने से ही बोर हो जायेंगे कि जीने की इच्छा बचेगी भी या नहीं।

बोधिसत्व said...

आपकी सक्रियता बहुतों को रास्ता दिखाएगी......

मीनाक्षी said...

धन्य हैं आपके सुपुत्र जिन्होने पहुँचा दिया आपको हमारे समक्ष !!
अब तो नए नए भाव आपके, हम तक पहुँचाना
हो गया उनका लक्ष !!
आप अपने भावों से 'विभोर' करने मे है द्क्ष !!

Anonymous said...

हिन्दी ब्लॉगजगत भी धन्य हो गया. आपकी कविताओं की प्रतिक्षा है.

Pramendra Pratap Singh said...

आपका हार्दिक स्‍वागत है।

Udan Tashtari said...

धन्य हम हुए हैं माता जी आपका स्नेहाशीष पा कर.

Srijan Shilpi said...

आपके स्नेहाशीष शब्दों में ढल कर इसी तरह हम सब पर बरस कर हमें कृतार्थ करते रहें। अपने बारे में जिन शब्दों में आपने परिचय दिया है, उससे हमें जीने की कला की सीख मिलती है।

अनिल रघुराज said...

आपकी कविताएं हमारे लिए अनुभवों की थाती लेकर आई हैं। ये हम पर आपका स्नेहाशीष बनकर बरसेंगी, यही विश्वास और अपेक्षा है।

अजित वडनेरकर said...

अम्मा को प्रणाम करता हूं।
अभयभाई ने सचमुच पुण्य का काम किया जो आपका ब्लाग खुलवा दिया।
मगर दरअसल आपके संस्कार-पुण्य ही उन्हें मिले और शब्दों से उनका रिश्ता हुआ।
हमें आपकी कविताई का शौक अभिभूत कर गया।
कविता क्या है-
कैसे लिख जाती है कविता,
भाव कहाँ से आते हैं ?
हाथ ये कैसे लिख देते हैं,
शक्ति कहाँ से पाते हैं ?

ये सब इतनी आसान शब्दावली में
आज से पहले कभी नहीं पढ़ा था।
हिन्दी ब्लाग जगत को आज अम्मा मिल गईं। हम बहुत खुश हैं।

सादर, साभार
अजित

आभा said...

ऐसे ही आपका आशीष और आपकी कविताएँ पढ़ने को मिलती रहें.....प्रणाम

अनामदास said...

अम्मा जी को मेरा प्रणाम. बेहद सुंदर कविताएं, ऐसी सादगी जो चाहकर नहीं पाई जा सकती.

ghughutibasuti said...

हम सबके बीच आपका स्वागत है और आशा है आपकी कविताएँ हमें पढ़ने को मिलती रहेंगी । अभय जी को धन्यवाद जो हमें आपकी कविताएँ पढ़ने का अवसर दिया ।
घुघूती बासूती