Sunday 6 January, 2008

कौन देश से आए पथिक तुम

कानपुर के मेरे घर मे इन्टरनेट लग गया है और यह पहली कविता है जो मेरे घर से छापी जा रही है। ये काम भी मेरा बेटा अभय ही कर रहा है.. आप लोगों की प्रतिक्रियाएं भी मैं दूसरों के द्वारा सुनती हूँ। अपनी कमज़ोर होती आँखों के चलते नेट पर पढ़ना मेरे लिए आसान नहीं है। मीरा बाई की पंक्तियाँ मुझे याद आती हैं जो पहनावे सो ही पहनूँ जो देवे सो खाऊँ.. उसी मनोदशा में मैं हूँ।

मेरे पाठक ही मेरे आत्मीय हैं। बिन देखे ही जैसे मैं सबसे परिचित हूँ- किसी रूप और नाम की दरकार नहीं। जैसे एक ही भाव नदी में सब तैर रहे हैं अपनी-अपनी तरह से चेतना से प्रदीप्त प्रकाशमय और जागृत। मेरा उन सब को धन्यवाद, आशीर्वाद और स्नेह!

एक पुरानी कविता यहाँ प्रस्तुत है..

कौन देश से आए पथिक तुम
क्या है नाम तुम्हारा

किसकी तुम अद्भुत आशा हो
क्या है लक्ष्य तुम्हारा
मिलने का उद्देश्य तुम्हारा
मैंने जान न पाया
क्या है नाम तुम्हारा

युग युग की लालसा नयन में
वाणी में है याचना
चलते हो डगमग कदमों से
भूल गए हो रास्ता

जिसे ढूँढते मन में छिपा है
दीपक क्यों नहीं बारता
जहाँ खड़े हो लक्ष्य वही है
दृष्टि क्यों नहीं खोलता
क्या है नाम तुम्हारा

-३०-४-९३

13 comments:

Anonymous said...

kaun des se aaye musafir,sundar kavita.

Anonymous said...

adarniya vimla madam ji,sadar pranam,aaj apki sari kavita padhi,laga jaise mandir mein baithi bhajan sun rahi hun.all of them r marvalous.kitni gehrai hai un mein.bhakti raas mein dubi,jeevan ke kuch bhav.wah wah,tariff bhi nahi kar sakti,itni khubsurat.sari ki sari.

kuch padhte waqt ankhen bhar aayi.aap ki lambi aayu ki prarthana karti,aapka swasth hamesha aacha rahe iski dua karti,apka aashirwad rahe hum par kehti,apki ek pathak.mehek.

Sanjeet Tripathi said...

इंटरनेट कनेक्शन लगने पर बधाई आदरणीया आपको!

कविता विचारने पर मजबूर करती है वहीं सुझा भी रही है।
शुक्रिया!

सुनीता शानू said...

सुंदर कविता के लिये बधाई आपको...और सहयोग के लिये अभय को धन्यवाद...

पारुल "पुखराज" said...

kitney sundar bhaav hain,,bahut aabhaar..isey padhvaaney ka..

mamta said...

इंटरनेट कनेक्शन लगने की बधाई ।

कविता और कविता के भाव दोनो ही अत्यंत सुन्दर।

Shastri JC Philip said...

"युग युग की लालसा नयन में
वाणी में है याचना
चलते हो डगमग कदमों से
भूल गए हो रास्ता"

सशक्त, भावना से भरी अभिव्यक्ति. नियमित रूप से लिखें एवं छापती जायें. यदा कदा कविता-परिचय भी जोड दें!

Pankaj Oudhia said...

आप अभय जी के माध्यम से लिखते रहिये। हम पढ कर खुद को धन्य समझेंगे।

मीनाक्षी said...

ब्लॉग जगत के मन्दिर में धूप दीप से जल गए आपकी पावन पाती को बाँचने हम तो लग गए.
अभय जी आपका भी धन्यवाद जो आपके कारण ही हम आपकी माँ जी के पावन काव्य का आनन्द ले पाते हैं. शुभकामनाएँ

ghughutibasuti said...

नेट लगने पर बधाई । कविता अच्छी लगी ।
नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती

काकेश said...

मोहक कविता.

Ila's world, in and out said...

Aadarniya Vimlaji, isi ko kahte hain aadhunik vighyan aur sahitya ka sangam. Na internet hota aur na hi hum jaise paathak aap jaisi aadarniya hasti ki kavita padh pate. Abhayji ko hardik badhai, jo unhone apni maa ki pratibha sab ke saamne rakhi.Aapko shat shat naman, likhti rahen, ap bahut prerna deti hain.

गरिमा said...

आपकी कविताओ के भाषा, भाव, ताजगी, यहाँ पर रूकने के लिये विवश कर रहे हैं, जैसे मेरा मेडिटेशन कक्ष है जहाँ से उठने का मन ही नही करता है।