पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी
यह आदेश नहीं मानूँगी
चरण-चिह्न हो अलग हमारे
इतना ही अनुरोध करूँगी
पद-चिह्न के साथ चलूँगी
उनके चारों ओर चलूँगी
पूजा भी उनकी कर दूँगी
आदर-मान सदा मैं दूँगी
पर इन पर मैं चलूँ प्रिये
इतना तो कर नहीं सकूँगी
तुम भी इसी जगत के वासी
मेरा भी अस्तित्व अलग है
अपने-अपने चिह्न के संग
हम दोनों एक साथ चलेंगे
तुम अपनी पहचान बनाओ
मैं अपनी धुन में रम लूँगी
पूज्य चरण पर चरण टिका कर
क्यों अपमान करूँ मैं उनका
मैं इनका अनुगमन करूँगी
उनसे कुछ शिक्षा भी लूँगी
पद-चिह्नो पर चलकर तुम भी
कोई राह नहीं पाओगे
चिह्न बनाकर आगे बढ़ते
कोई राह ढूँढ पाओगे
राह हमारी एक रहेगी
लक्ष्य हमारा एक रहेगा
चिह्न बनाते आगे बढ़ते
हम दोनों एक साथ चलेंगे
क्षितिज पार एक साथ करेंगे
चरण-चिह्न पर अलग रहेंगे
Friday, 1 February 2008
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43 comments:
बेहद बेहद प्रभावशाली!
anmol bhaav...
प्रणाम ..कितनी सरलता से कविता में आपने अपनी बात कही है -- आपका लिखा बहुत सुन्दर होता है
प्रणाम
aap nae jo kehaa aur jis sandarbh mae kehaa petaa nahin kitano nae samjha
per aap kee is rachna ko mae apne blog per bina aap kii agyaa kae prassarit kar rahee hun kyokii maa ki har cheez per beti kaa adhikar sabse pehla hota hae
हम तो आपके इस ब्लाग को देखकर बड़े प्रसन्न हो गये. प्रणाम करते हैं माई आपके इस उत्साह को.
pahali baar dekha hai aap ka blog. bahut achchha laga. prabhavit kiya aap ki sakriyata va vishesh roop se svatantra chetna ne.
http://kvachaknavee.spaces.live.com/
http://360.yahoo.com/kvachaknavee
प्रणाम!!
बहुत दिनों बाद आया यहां और अब पढ़ने के बाद गुनता हुआ लौट रहा हूं।
बहुत-बहुत सुन्दर।
हमें तो तारीफ के लिए शब्द नही मिल रहे है।
bahut hi sundar...anukarniya..
सुंदर..
पद-चिह्नो पर चलकर तुम भी
कोई राह नहीं पाओगे
चिह्न बनाकर आगे बढ़ते
कोई राह ढूँढ पाओगे
सच मे पद-चिह्नो पर चलने वाले बहुत हे,लेकिन अपने पद-चिह्न बना कर जो चलते हे वोही राह भी पाते हे, धन्यवाद इतनी सुन्दर कविता के लिये.
aapka blog dekh kar bahut hi achha laga, aur aapne bahut hi achha likha hai.
shukriya. aabhar.
durga
सही सही !
ओहहहह कितनी सुंदर रचना..! कितने सारे भाव...! समझो तो बहुत कुछ समझाने चलो तो शब्द नही...बहुत ही सुंदर..!
प्रेरणास्पद..........
प्रणाम ।
मन को छू गया !! कुछ पंक्तियों ने तो सोचने को मजबूर कर दिया !!
पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी
यह आदेश नहीं मानूँगी
चरण-चिह्न हो अलग हमारे
इतना ही अनुरोध करूँगी
माते कहने की यब सादगी काश हिंदी के कवियों को भी आशीष में दे देतीं आप....
आप को लगातार पढ़ रहा हूँ...पर टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ...
क्षमा करें...आशीष दें...
प्रणाम ! कविता में छिपे भाव को अगर हम सब समझ जाएँ तो क्या कहना.. ! राह दिखाती प्रभावशाली रचना !
pranam
aap vakaai adhbhut hai aor khari bhi.
KITNA SUNDAR,KITNA ANUPAM
BHAV-JAGAT KA YAH GAHNA HAI
JO BHI PADH LE,JO BHI GUN LE
YAHI KAHEGA...KYA KAHNA HAI !
TUM SACHMUCH AVNEE HO MAATE !
JEEVAN KA RAS BAANT RAHI HO
BAS ITNA AASHISH HAMEN DO
JEENA TO YUN HI JEENA HAI...!
NAMAN...
fantastic!!
पद-चिह्नो पर चलकर तुम भी
कोई राह नहीं पाओगे
चिह्न बनाकर आगे बढ़ते
कोई राह ढूँढ पाओगे
सचमुच अदभुत लगी कविता .प्रणाम..
जब साथ साथ चलेंगे,
तब एक दूसरे के पद चिन्हों पर नहीं,
एक जैसे पद चिन्हों पर चलेंगे.
बहूत सुन्दर कहा,
बहूत कुछ कहती आपकी कविता, और जैसे आज के वक्त की माँग है यह कविता। simply great :)
aaj net par achanak apka blog dekha .apki kavitaon ne mantramugdh kar diya.man ko chua hai apki kavita ne.
dr.jaya anand
हमारे पास के शब्द तो आप के शब्दों की अनुगूंज में खो गये , aतः कोई टिप्पणी कर पाने में सक्षम नही रह गाया | Kavita Vachaknavee
जी का आभारी हूँ की यहाँ तक की राह बताई ||
बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक! यहाँ बांटने का आभार!
पूज्य चरण पर चरण टिका कर
क्यों अपमान करूँ मैं उनका
मैं इनका अनुगमन करूँगी
उनसे कुछ शिक्षा भी लूँगी
waah , bahut gehri rachna !
ओह...क्या बात है....
मन मोह लिया इस अद्वितीय रचना के भाव और कला पक्ष ने...
इस सुन्दर कलम को नमन !!!
एक भावप्रवण और चिंतनप्रधान रचना है यह...आपको बधाई!
मन को छू गयी रचना .... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
नई पुरानी हलचल से यहां आना हुआ। मन विभोर हो गया आपकी इस कविता से।
bahut hi sunder ,dridh aur shaktishali kavita likhi hai aapne.....bahot pasand aayee.
क्षितिज पार एक साथ करेंगे
चरण-चिह्न पर अलग रहेंगे
आत्मसात करने वाले भाव...
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ....सुखद अनुभव रहा !
दूसरों की बजाय अपने पदचिन्ह बनाना………वाह सुन्दर व सार्थक रचना।
बहुत मनभावन भवाव्यक्ति उत्कृष्ट लेखन...
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
उत्तम रचना...
सादर.
अच्छा लिखा है,आपने.जो भाव हैं,कविता में...वो सुन्दर हैं.
क्षितिज पार एक साथ करेंगे
चरण-चिह्न पर अलग रहेंगे
...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...भावों और शब्दों का अद्भुत संयोजन...आभार
पूज्य चरण पर चरण टिका कर
क्यों अपमान करूँ मैं उनका
मैं इनका अनुगमन करूँगी
उनसे कुछ शिक्षा भी लूँगी
बहुत श्रेष्ठ भाव , वाह !!!!!!!!!!!
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